सतगुरू बाबा लक्ष्मण सिंह जी महाराज

निराकारी जागृति मिशन रजि. के तीसरे सतगुरू परमपूजनीय निराकारलीन बाबा लक्ष्मण सिंह जी महाराज का जन्म गांव बब्याल जिला अम्बाला हरियाणा में परमपूजनीय पिता सरदार छज्जा सिंह एंव परमपूजनीय माता परमेश्वरी देवी के घर सन 10 मार्च 1924 मे हुआ।

जीवन और आध्यात्मिक यात्रा

अपने पैतृक गांव से शिक्षा लेने के बाद बाबा जी सेना में भर्ती हो गये और दिलोजान से देश की सेवा की। फौज में नौकरी के दौरान जब बाबा जी का तबादला कानपुर यू़.पी. में हुआ उनकी मुलाकात एक उच्चकोटि के महात्मा रामचन्द्र जी से हुर्इ बस यहीं से ही बाबा जी का आध्यात्मिक जीवन शुरू हो जाता है। महात्मा रामचन्द्र जी के माध्यम से बाबा लक्ष्मण सिंह जी महाराज को सतगुरू शहनशाह महताब सिंह जी महाराज का सानिध्य प्राप्त हुआ।
नित्यप्रति रूहानी सत्संग सुनने से धीरे-धीरे सतगुरू बाबा महताब सिंह जी महाराज के मुखारविन्द प्रवचनों का रंग बाबा लक्ष्मण सिंह जी महाराज पर चढ़ने लगा।
संयोगवश एक दिन बाबा महताब सिंह जी महाराज ने बाबा लक्ष्मण सिंह जी महाराज को अपने पास बुलाया और उनके बारे में भार्इ रामचन्द्र जी से जानना चाहा बस उसी दिन से बाबा लक्ष्मण सिंह जी महाराज सतगुरू शहनशाह महताब सिंह जी महाराज के दीवाने हो गये और बाबा जी के मन में तीव्र वैराग्य और निर्गुण-निराकार एवं सर्वाधार परमात्मा को खुली आंखों से देखने की जिज्ञासा दिन-प्रतिदिन बढ़ती चली गर्इ। जैसे संत महापुरूषों का कथन है कि होये वही जो राम रच राखा।

परमात्मा की पहचान

आखिर वह दिन आ ही गया जब बाबा महताब सिंह जी ने बाबा लक्ष्मण सिंह जी को मालिकेकुल निर्गुण-निराकार परमात्मा का खुली आंखों से दर्शन-दीदार कराके निज स्वरूप आत्मा का बोध कराया और वास्तविकता से परिचित कराया। वैसे तो बाबा लक्ष्मण सिंह जी महाराज बचपन से ही साधु्-सन्तो की संगत में अपना ज्यादातर समय बिताते थे लेकिन अमोलक ज्ञान की दात प्राप्त करने के बाद बाबा जी इसी ओत-प्रोत निर्गुण-निराकार परमसत्ता के चिन्तन-मनन में ज्यादा तल्लीन रहने लगे।
जब बाबा महताब सिंह जी महाराज के जीवन का अंतिम पड़ाव चल रहा था तब उन्होने बाबा लक्ष्मण सिंह जी महाराज को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करके निराकारी जागृति मिशन की बागडोर उन्हें सौंप कर 8 जनवरी 1983 में तू ही निराकार, तू ही निराकार, तू ही निराकार का सिमरण करते हुऐ निराकारलीन हो गये। उसी दिन से बाबा लक्ष्मण सिंह जी महाराज ने यह जिम्मेदारी बाखूबी बड़ी लगन और पूर्ण निष्ठा के साथ निभाते हुऐ अपना सारा जीवन इसी अंग-संग निर्गुण-निराकार एंव अद्वैत स्वरूप परमात्मा के प्रचार-प्रसार में लगाया।

मिशन की बागडोर

10 मार्च 2002 को गांव कुराली अम्बाला हरियाणा में एक विशाल संत-सम्मेलन का आयोजन किया गया और सतगुरू शहनशाह बाबा लक्ष्मण सिंह जी महाराज ने अपने सर्वप्रिय जानशीन शिष्य स्वामी ज्ञान नाथ जी महाराज को सर्व साधु-संगत की मौजूदगी में अपने गले मे पहना हुआ पटकासिरोपा स्वामी ज्ञान नाथ जी महाराज के गले में पहनाकर नतमस्तक होकर नमस्कार किया और साथ ही सभी महापुरूषों को स्वामी जी के श्री चरणों में नमस्कार करने का आदेश दिया। बाबा जी ने कहा कि स्वामी ज्ञान नाथ जी महाराज और मैं आत्मज्ञान की दृष्टि से एक ही रूप है सिर्फ शरीर देखने में दो लगते हैं।
बाबा जी ने कहा कि आज के बाद सभी स्वामी ज्ञान नाथ जी महाराज को अपना रहबर मानते हुए इनकी हर आज्ञा का पालन करना ही आप सबका पहला कर्तव्य है। सभी ने बाबा जी के इस फैसले का समर्थन किया और हाथ खड़े करके निराकारी जागृति मिशन की विचारधारा का मिलजुल कर प्रचार-प्रसार करने का संकल्प लिया। इस तरह पारम्परिक रूप से गुरू-गददी की रस्म निभाते हुऐ बाबा लक्ष्मण सिंह जी महाराज ने स्वामी ज्ञाननाथ जी महाराज को अपना उत्तराधिकारी घोषित करके निराकारी जागृति मिशन की बागडोर स्वामी जी को सौंपकर प्रभु चिंतन में लीन रहने लगे।

जीवनयात्रा का अंत

संगरूर, पंजाब मे 17 नवम्बर 2003 को सतगुरू बाबा लक्ष्मण सिंह जी महाराज ने सभी श्रद्धालुओं को अपना अंतिम आदेश और उपदेश दिया और सब को धन निराकार कहकर अलविदा कहा। हजूर महाराज आराम की मुद्रा में लेट गये और तू ही निराकार तू ही निराकार तू ही निराकार महामंत्र का सिमरण करते हुऐ निराकारलीन हो गये। संगरूर में ही हजूर महाराज की अंतिम यात्रा बड़ी धूमधाम से बैण्ड-बाजे के साथ निकाली गर्इ । बाबा जी का पार्थिव शरीर एक फूलों से सजी हुर्इ गाड़ी में अंतिम संस्कार भूमि तक ले जाया गया आगे-आगे फूलों से सजी हुर्इ गाड़ी और पीछे-पीछे तू ही निराकार, तू ही निराकार, तू ही निराकार की अमर ध्वनि के साथ वातावरण भी निराकारमय हो गया और ऐसा स्पष्ट लग रहा था कि वास्तव में साकार और निराकार एक है। अपने हृदय के सम्राट सतगुरू शहनशाह बाबा लक्ष्मण सिंह जी महाराज के पार्थिव शरीर को स्वामी ज्ञाननाथ जी ने मुखाग्नि देकर अंतिम संस्कार किया। इस अवसर पर मौजूद सभी श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुऐ स्वामी ज्ञान नाथ जी महाराज ने कहा कि हजूर महाराज बाबा लक्ष्मण सिंह जी का आदेश और उपदेश मानना ही हम सबके लिए बाबा जी के प्रति सच्ची पुष्पांजलि और श्रद्धांजलि होगी।

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